निदा जी कहते है इस धरती पर आकर सबका कुछ खो जाता है कुछ रोते है कुछ इस गम से ग़जल सजाते है ।
चीजें कई बार हद से अधिक जटिल हो जाती है। मैं जो करना चाह रहा हुँ कर नही रहा जो कहना चाह रहा हुँ उसे बोल नही रहा सालो से पहचान बनाने की कोशिस है लेकिन आज तक हर व्यक्ति से अनजान हुँ । दर्द बहुत है लेकिन दिखा नही सकता सपने जिन्दा है इसलिए सो नही सकता ,ये तो बात हुई मेरी सरकरी हालातो की लेकिन दोस्तो हालात को खुद पर कभी हावी मत होने दो समय का चक्र घुम कर खुशिया फिर लाएगा आज घोसला खली है कल फिर बसेगा हो सकता है आज आप जिसका इंतजार कर रहे है वो न मिले तो रुकिए मत चलते रहिये क्या पता आपकी खोज मे वो आगे निकल गया हो। तो चलिए जब तक ये दर्द है कुछ गज़ले सजाते है।शकील जमाली की यह गजल कुछ सजाकर पेस कर रहा हु
सफर से लोट जाना चाहता है
ये परिंदा आशियाना चाहता है
कोई स्कूल की घंटी बजा दे
यह बच्चा मुस्कुराना चाहता है
उसे रिश्ते थमा देती है दुनिया
जो दो पैसे कमाना चाहता है
यहाँ साँसों के लाले पड़ रहे है
वो पागल जहर खाना चाहता
हमारा हक दबा रखता है जिसने
सुना है हज को जाना चाहता है
गुंगा पंडा था जो आज तक
सरकार के खिलाफ साजिश रचना चाहता है।